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औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया ‘ : महिला सशक्तिकरण और साहिर लुधियानवी की शायरी :महिला दिवस विशेष

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 महिला सशक्तिकरण और साहिर लुधियानवी की शायरी :महिला दिवस विशेष

8 मार्च का दिन न केवल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसी दिन साहित्यिक जगत के महान शायर साहिर लुधियानवी का भी जन्म हुआ था। उनकी शायरी में समाज का सच, प्रेम की गहराइयाँ और नारीवाद की बुलंद आवाज़ शामिल थी। उन्होंने अपनी लेखनी से उन विषयों को छुआ, जिन्हें बोलने से भी लोग कतराते थे।

दुनिया के तजुरबातो-हवादिस की शक्ल में

जो कुछ मुझे दिया है, लौटा रहा हूँ मैं

जीवन परिचय

अब्दुल हयी ‘साहिर’ का जन्म 8 मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना में एक जागीरदार परिवार में हुआ था। उनकी माता ने पति से अलग होने का फैसला किया, और साहिर ने भी अपने पिता के खिलाफ गवाही दी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। इस कठिन जीवन ने उन्हें सामाजिक विषमताओं को गहराई से समझने का अवसर दिया।

शिक्षा और शुरुआती संघर्ष

साहिर ने लुधियाना के खालसा हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और गवर्नमेंट कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ उनकी मुलाकात अमृता प्रीतम से हुई। अमृता से उनका प्रेम असफल रहा, और कॉलेज से निष्कासन के बाद उन्हें जीवनयापन के लिए संघर्ष करना पड़ा।

पहली पुस्तक और साहित्यिक पहचान

साहिर ने 1943 में अपनी पहली किताब ‘तल्ख़ियां’ प्रकाशित की, जिसने उन्हें पहचान दिलाई। इसके बाद वे अदब-ए-लतीफ़, शाहकार और सवेरा पत्रिकाओं के संपादक बने। उनकी लेखनी सरकारों को चुभती थी, जिससे पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया और वे भारत लौट आए।

फिल्मी करियर और प्रसिद्ध गीत

साहिर का फिल्मी सफर 1948 में शुरू हुआ, लेकिन 1951 में आई फिल्म ‘नौजवान’ का गीत “ठंडी हवाएं लहरा के आएं” ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई। उनके लिखे गीतों में सामाजिक संदेश झलकता था।

लोकप्रिय गीत:

• “कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है” (कभी-कभी)

• “मैं पल दो पल का शायर हूँ” (कभी-कभी)

• “तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा” (धूल का फूल)

• “बाबुल की दुआएँ लेती जा” (नीलकमल)

महिला सशक्तिकरण और उनकी शायरी

साहिर लुधियानवी महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों के कट्टर समर्थक थे। उनकी नज़्म ‘औरत’ समाज में स्त्रियों की दुर्दशा पर करारा प्रहार करती है:

“औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया,

जब जी चाहा कुचला, मसला, जब जी चाहा धुत्कार दिया।”

साहिर की लेखनी में नारीवाद केवल सहानुभूति तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने उसे सशक्तिकरण का रूप दिया। उनका यह शेर इसकी गवाही देता है:

“जो तुम्हारी मर्जी पे जी रहे, उन्हें हक़ नहीं है कि जी सकें।”

पुरस्कार और उपलब्धियाँ

साहिर पहले ऐसे गीतकार थे जिन्हें रॉयल्टी मिलती थी और उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर गीतकारों के नाम की घोषणा की व्यवस्था भी शुरू करवाई। उन्हें ‘ताजमहल’ और ‘कभी-कभी’ के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले और भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।

साहिर ने विवाह नहीं किया और जीवनभर अकेले रहे। 25 अक्टूबर 1980 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

साहिर लुधियानवी की शायरी आज भी हमें प्रेरित करती है। उनकी जयंती और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इस खास मौके पर हम उनकी रचनाओं को नमन करते हैं। उनकी यह नज़्म उनके जीवन और विचारधारा को पूरी तरह व्यक्त करती है:

ज़िन्दगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है,

भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में,

इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है।

साहिर लुधियानवी को श्रद्धांजलि, और सभी महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएँ!

 

✍ लेखक :  डॉ. जयंत कुमार वी. रामटेके, एडमिन fbसाहिर लुधियानवी फैन क्लब, एसोसिएट प्रोफेसर, सेठ केसरीमल पोरवाल कॉलेज, कामठी

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